कार्तिक पूर्णिमा के दौरान बरेली में रामगंगा नदी के तट पर लगने वाले चौबारी मेले की कुछ झलकियां।--रोहित उमराव
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गांवों से डल्लब गाड़ी में सवार होकर पूरे साजो सामान के साथ मेला देखने आते ग्रामीण परिवार।
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यह मेला विशेषकर घोड़ों की खरीद-बिक्री के लिए जाना जाता है। यहां कई प्रदेशों से घोड़ा व्यापारी अलग-अलग नस्ल के घोड़े लेकर आते हैं।
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मेले में नखासे की शोभा देखते बनती है। यहां घोड़ों के साज-ओ-सामान का बाजार अलग से लगाया जाता है। इसमें घोड़े की काठी, फुलरा, लगाम, घंटियां, नाल, रंग-बिरंगे फुलरे आदि सामान व्यापारी खरीदते हैं।
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मेले में अपने लिए छोड़ा घोड़ा लेने पहुंचे अनुभव ने पहने नखासे के देखा।
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नखासे से अपनी जरुरत का सामान लेकर जाते लोग।
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मेले में इक्के, तांगे, बग्घी, सवारी आदि तरह-तरह के घोड़े बिकते और खरीदे जाते हैं।
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मेले में बच्चें के लिए रंग-बिरंगे खिलौने भी बिकते हैं।
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मेले में घुड़दौड़ दे्खना अपने आप में सबसे अलग मजे वाली बात है। यहां एक-से-एक शानदार घोड़े अपनी रफ्तार और चाल से लोगों का दिल जीत लेते हैं। आगे दौड़ता नंदगांव के सामवीर का घोड़ा कालू अपनी सरपट चाल से सबसे आगे रहा।
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अनुभव ने मेले में कई बार घोड़े को छूने की इच्छा व्यक्त की। उनकी इस ख्वाहिश के लिए मुझे रफियाबाद के रहने वाले वीरेंद्र जी से अग्रह करना पड़ा और इस तरह उन्हें रेश्मा (घोड़ी) की सवारी करने का मौके मिल।
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मेले में डिस्को झूले के नीचे बनी मछली को छूते अनुभव और आराध्या।
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मेले में लगा पत्थर से बने सिल-बट्टे, लौढ़ा, चकिया-दरेतिया, होरसा (चकला), खल-मूसल का बाजार।
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